Saturday, December 10, 2011
prayer
हे परम प्रियतम पूर्णतम पुरुषोत्तम श्री कृष्ण ! तुमसे विमुख होने के कारण अनादिकाल से हमने अनंतानंत दुःख पा...ए एवं पा रहे हैं ।
पाप करते करते अंतःकरण इतना मलिन हो चुका है
कि रसिकों द्वारा यह जानने पर भी कि तुम अपनी भुजाओं को पसारे
अपनी वात्सल्यमयी दृष्टि से हमारी प्रतीक्षा कर रहे हो , तुम्हारी शरण में नहीं आ पाता ।
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हे अशरण शरण ! तुम्हारी कृपा के बिना तुम्हे कोई जान भी तो नहीं सकता ।
ऐसी स्थिति में , हे अकारण करुण ! पतित पावन श्री कृष्ण ! तुम अपनी अहैतुकी कृपा से ही हमको अपना लो ।
हे करुणा सागर ! हम भुक्ति मुक्ति आदि कुछ नहीं मांगते , हमें तो केवल तुम्हारे निष्काम प्रेम की ही एक मात्र चाह है ।
हे नाथ ! अपने विरद की ओर देखकर इस अधम को निराश न करो ।
हे जीवन धन ! अब बहुत हो चुका । अब तो तुम्हारे प्रेम के बिना यह जीवन मृत्यु से भी अधिक भयानक है ।
अतएव ...प्रेमभिक्षां देहि , प्रेमभिक्षां देहि , प्रेमभिक्षां देहि।
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