Wednesday, August 29, 2012

कहौं हरि कहा ? कौन मुहँ लाय |

कहौं हरि कहा ? कौन मुहँ लाय |
तुम सों पाय पतित पावन प्रभु, चरन शरन नहिं आय |
पढ्यो सुन्यो सब वेद पुरानन, गुन्यो नाहिं इठलाय |
... नित रह लक्ष्य लोकरंजन को, बातन विविध बनाय |
औरन की झूठी निंदा करि, चाहत रसिक कहाय |
अबहूँ नाथ ! ‘कृपालु’ न चेतत, नर तनु बीत्यो जाय ||

भावार्थ- हे श्यामसुन्दर ! तुमसे कौन सा मुँह लेकर, क्या कहूँ ? तुम सरीखा पतितपावन स्वामी पाकर भी तुम्हारी शरण में नहीं आ सका | वेदों, शास्त्रों एवं पुराणों को भली-भाँति पढ़ा और सुना भी, किन्तु अहंकारवश नहीं माना | प्रतिक्षण अनेक प्रकार की रंग-बिरंगी बातों के द्वारा संसार को ही प्रसन्न करने का लक्ष्य रखा | वास्तविक संतों की भी झूठी निन्दा करके अपने आपको संत कहलवाने का प्रयत्न किया | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं यह अमूल्य मनुष्य शरीर समाप्त होता जा रहा है, फिर भी चेतना नहीं आ रही है |

Tuesday, August 7, 2012

अमूल्य तत्वज्ञान - परम वन्दनीय जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज

प्रश्न - हमारे सेव्य कौन हैं ?

उत्तर (श्री कृपालु जी महाराज) - हमारे सेव्य श्री कृष्ण ही हैं. हमारे माने आत्मा का असली सेव्य कौन है. क्योंकि विश्व का प्रत्येक व्यक्ति एकमात्र आनंद ही चाहता है अतः वह आनंद का दास है. श्री कृष्ण एवं आनंद पर्यायवाची शब्द हैं अतः वह श्री कृष्ण का अनजाने में दास ही है. हम (आत्मा) अंश हैं, वे (श्रीकृष्ण) अं
शी हैं. तो अंश अपने अंशी को ही चाहता है. आग कि लोउ ऊपर को जाती है, सूर्य की अंश है वो, वो अंशी है. पृथ्वी का ढेला पृथ्वी की ओर आता है, पृथ्वी का अंश है. ऐसे ही हर चीज का अंश अपने अंशी की ओर भागता है, ये नेचर है. सब नदियाँ समुद्र की ओर भागती हैं क्योंकि समुद्र उनका अंशी है और समुद्र में लीन हो जाती हैं. ऐसे ही हम जीव हैं, भगवान् के अंश है, इसलिए अंशी को पाना हमारा नेचर है. देखो ये संसार पंचमहाभूत का है, इसलिए सजातीय हैं इनका विषय पंचमहाभूत का शरीर.. हम (आत्मा) दिव्य हैं, भगवान् के अंश हैं. अतः श्रीकृष्ण ही हमारे सेव्य हैं...

जीव कृष्ण नित्य दास गोविन्द राधे |
यही तत्वज्ञान निज बुद्धि में बिठा दे | |

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