हमारो , दोउ प्यारी -प्यारो !
एक गौर-तनु एक नील -तनु , दोउ नैनन-तारो !
इक धारो नीलाम्बर अरु इक , पीताम्बर धारो !
इक सोरह -श्रृंगारहिं छबि इक , नटवर-छबि वारो !
इक भोरी अति इक अति चंचल , दोउ त्रिभुवन न्यारो !
कह 'कृपालु' जब होती होड़ दोउ , कोउ नहिं कोउ हारो !
भावार्थ ---प्रिय - प्रियतम दोनों ही हमारे सर्वस्व हैं ! एक गौर-वर्ण और एक नील -वर्ण के हैं तथा दोनों ही मेरी आँखों के तारों के समान हैं ! एक नीलाम्बर धारण किये हुए है एवं एक पीताम्बर धारण किये हुए हैं ! एक सोलहों श्रंगार से अलंकृत हैं एवं एक नटवर वेष से अलंकृत हैं ! एक स्वभावतः अत्यन्त भोली हैं , एक स्वभावतः अत्यन्त चंचल हैं ! दोनों ही संसार से निराले है , क्योंकि दिव्य चिन्मय हैं ! 'कृपालु' कहते हैं जब दोनों में किसी प्रकार की रसमयी होड़ हो जाती है तब कोई भी किसी से हार नहीं मानता ! क्योंकि स्वरूपतः परमार्थतःदोनों एक ही हैं !
प्रेम-रस-मदिरा
युगल -माधुरी
-----जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज.